Sunday, September 14, 2014

हिन्दी, मयंक छाया और लिटरेट वर्ल्ड

आज मुझे मयंकजी बहुत याद आ रहे हैं - साथ ही लिटरेट वर्ल्ड भी। शायद हिन्दी दिवस है और बार-बार कई अपडेट सोशल मीडिया पर देख रहा हूँ, शायद इसलिए...। देख रहा हूँ कि कैसे हमने लगभग भुला दिया है कि 2001 की शुरुआत में ही इस आभासी दुनिया यानी इंटरनेट पर जाने-माने (अंग्रेजी) पत्रकार और लेखक मयंक छाया नाम के एक गुजराती शख़्स ने भारतीय भाषा और साहित्य को हिन्दी भाषा में शानो-शौक़त के साथ रखने की एक शानदार ज़िद की थी।

आभासी दुनिया के वे लोग जिन्होंने हाल में इस क्षेत्र में कदम रखा है वे शायद लिटरेट वर्ल्ड और मयंक जी से परिचित नहीं होंगे। बात 2001 की है। तब वे कैलिफ़ोर्निया में रहा करते थे, आजकल शिकागो में हैं। उन्होंने इंटरनेट, सिनेमा और प्रकाशन की एक कंपनी बनाई थी — लिटरेट वर्ल्ड के नाम से। इसके अंतर्गत बहुभाषी साहित्यिक पोर्टल चलाने की योजना भी बनी। स्पेनिश और अंग्रेजी के साथ हिन्दी के लिए भी यह योजना बनी थी। तब मैं जनसत्ता में था और वहीं काम कर रहे संजय सिंहजी के रेफरेंस से लिटरेट वर्ल्ड के लिए काम करने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी हाँ की थी। पोर्टल की काफ़ी भव्य और पेशेवर शुरुआत थी। मैं शुरू से इस पोर्टल से जुड़ा रहा और हिन्दी से जुड़े लगभग सभी काम में यहाँ शरीक रहा। बराबरी का रिश्ता, पेशेवर अंदाज़ और काफ़ी पैसा - सब कुछ जो तब हिन्दी पत्रकारिता के लिए लगभग दुर्लभ था  मुझे मिलने लगा। नया अनुभव था। पहली बार मैंने मयंकजी से ही सीखा था कि स्थापित संपादक और एक नया पत्रकार जिसने अपना कैरियर महज कुछ साल पहले शुरू किया हो  दोनों बराबरी के स्तर पर बात कर सकते हैं। सप्ताह में चालीस घंटे काम  यह भी मैंने यहीं सीखा।

हिन्दी के इस पोर्टल पर भाषा साहित्य और भारतीय संस्कृति से जुड़ी सामग्रियाँ पत्रिका की शक्ल में हर सप्ताह अपडेट की जाती थीं। यानी यह साप्ताहिक वेब पत्रिका थी। सारे राज्यों में लिटरेट वर्ल्ड ने अपने प्रतिनिधि रखे। उनके काम के लिए काफी बढ़िया मेहनताना दिया जाता रहा  लगभग हर शब्द एक रूपए की दर से। हर सप्ताह तीन लेखकों के स्तंभ छपते थे। एक लेखक तीन महीने तक लिटरेट वर्ल्ड के लिए लिखते थे — यानी बारह स्तंभ। मुझे याद है, क़रीब पाँच सौ शब्द के एक स्तंभ के लिए ढाई हज़ार रूपए तक दिए जाते थे। कई जाने-माने लेखकों ने लिटरेट वर्ल्ड के लिए लिखा  निर्मल वर्मा, विष्णु खरे, गीतांजलिश्री, मैत्रेयी पुष्पा, केपी सक्सेना, उदय प्रकाश, चित्रा मुद्गल, मृदुला गर्ग जैसे कई नाम। बंद होने के पहले आख़िरी कुछ महीनों को छोड़ दें तो सबकुछ काफ़ी बढ़िया रहा। लिटरेट वर्ल्ड ने प्रकाशन में आने की भी कोशिश की थी। भारी-भरकम साइनिंग अमाउंट के साथ कृष्णा सोबती के साथ बात हुई थी, लेकिन बीच में कहाँ किसने कब क्या कैसे किया कि यह विशुद्ध सद्भावपूर्ण कोशिश 'पूंजीवादी' साज़िश क़रार दी गई। ऐसा नहीं था कि मयंक जी भारतीय बाज़ार से परिचित नहीं थे। अमेरिका जाने के पहले पत्रकारिता का बड़ा हिस्सा उन्होंने भारत में ही बिताया था और उनका मानना था कि भारतीय भाषाओं के लेखक किसी भी दूसरी भाषाओं के लेखक से किसी मामले में कमतर नहीं हैं और इसलिए आर्थिक स्तर पर भी वैसा ही मानदेय उनके लेखन के लिए रहना चाहिए। लेकिन शायद हिन्दी साहित्य की दुनिया को भी यह पेशेवर अंदाज़ रास नहीं आया। कम पैसे में किसी पूंजीपति के लिए काम करें यह 'पूंजीवादी' शोषण अधिकतर को गवारा है, लेकिन उसी काम के कोई अधिक पैसे देने लगे तो वह 'पूंजीवादी' साज़िश हो जाती है! ख़ैर। आज भी हिन्दी में वैसी ई-पत्रिका नहीं आ पाई है जहाँ पर लगभग सारे छपे शब्दों के लिए काफ़ी बढ़िया भुगतान किया जाता हो। तब युनीकोड नहीं था, सुषा का उपयोग हम करते थे। वेब भी उतना ताक़तवर नहीं हो पाया था। काफ़ी तकनीकी समस्याएँ थीं। फिर भी, लिटरेट वर्ल्ड काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

मुझे लगता है कि हिन्दी को वेब पर इसके आरंभिक दिनों में ही गरिमा दिलाने में मयंकजी का नाम हमेशा याद किया जाना चाहिए। हिन्दी और भारतीय भाषाओं को लेकर उनका जज़्बा, उनकी सोच अद्भुत है। बहुभाषी मयंकजी हिन्दी में बेहद ख़ूबसूरत कविताएँ लिखते हैं, रंगों की भी उनकी अपनी अलग भाषा है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी मयंकजी उन कुछ लोगों में से हैं जो किसी को भी अपनी गर्मजोशी, दोस्ताना व्यवहार और प्रतिभा से पलों में क़ायल कर दे। नई तकनीक पर हिन्दी के हाल को लेकर जब भी इतिहास लिखा जाना चाहिए मयंकजी का नाम उसमें आवश्यक रूप में दर्ज करना अनिवार्यता है क्योंकि मयंक छाया और लिटरेट वर्ल्ड के बिना कंप्यूटर और वेब पर हिन्दी का इतिहास नहीं लिखा जा सकता है।

Friday, September 5, 2014

Call for Papers - FUEL GILT Conference 2014

FUEL GILT Conference 2014 - Call for Papers
November 14-15, 2014
Pune, India

Welcome to the 2nd FUEL GILT Conference - the largest event of FOSS language technology - its challenges, solutions, best practices and its conventions. FUEL GILT Conference is all about language technology world, all about GILT industry - G11N, I18N, L10N, and Translation world. The event is showcase of the efforts of volunteer communities and different organizations in the field of language technology. This event also tells us the pain and conflicts of different cultures and languages. All things are revolved around the language - related to words! We Worship Words!

The organizers of FUEL GILT Conference are Red Hat and C-DAC GIST. Thanks a lot to both the organizations for their continuous support and helping hand.

FUEL is growing only because of the support of volunteer communities world-wide and several well known organizations! The power of the event is the power of collaboration, the power of sharing, the power of volunteerism! Currently, almost 60 language communities are working with the FUEL Project across various domain including desktop, mobile, cloud, web, agriculture, health etc.

Since 2008, FUEL Project is consistently working with the different language communities to provide standard linguistic resources eg. terminologies, style guides, assessment methods etc to the world. Like last year, please collaborate and cooperate to make the event a huge success!

Call for Papers

We are pleased to announce the Call For Papers for FUEL GILT Conference 2014. Abstracts are invited for presentation/workshop on substantial, original and unique research on all aspects of GILT Industry (Globalization, Internationalization, Localization and Translations) with special focus on linguistic resources, standardization, e-governance and language technology.

The areas of interest include, but are not limited to, the following:

Language Technology; Corpus Linguistics; Machine Translation; Natural Language Processing; Globalization; Language and Translations; Technical Terminology; Dictionary; Style Guide; Unicode/CLDR; Script Grammar; Translation Editor; Rendering Systems; Quality Assessment; Fonts; Input methods; FOSS and Localization; Computational Linguistics; Language & Culture; Endangered Language;
Internationalization

Please visit the event page for detailed information.